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प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 13)




रात्रि का पहला पहर बीतने ही वाला था, सब लोग सो चुके थे, चारों ओर गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था, कहीं से भी कोई आवाज नहीं आ रही थी। पहाड़ी के किनारे खड़ी उस जर्जर इमारत के बैक कॉरीडोर में एक काले रंग की कार नजर आयी, काली अंधेरी रात में वह काली इमारत अत्यधिक भयानक दिखाई दे रही थी, मगर उस कार वाले को इमारत की भयावहता से कोई फर्क नही पड़ रहा था वह ठीक उसके पीछे तक चलता गया, अगले ही क्षण घास के मैदान के बीच एक सुरंग बनता हुआ नजर आया, कार तेजी से सुरंग में प्रविष्ट कर गयी। कार उसी दाढ़ीवाले नकाबपोश के सामने रुकी, उसके अंदर से एक काले लिबास में लिपटा नकाबपोश निकला, जिसका चेहरा तो नहीं दिख रहा था मगर उसकी चाल से उसके भीतर धधक रहे क्रोध के लावे का अंदाजा लगाया जा सकता था।

"तुमने ऐसा क्यों किया ब्लैंक? जब तुमने मुझसे कहा उन्हें छोड़ दोगे तब मुझें नहीं पता था कि तुम्हारा ये मतलब है!" काले लिबास से ढका हुआ वह शख्स गुस्से से गुर्राया। क्रोध की अधिकता के कारण उसके जिस्म का अंग-अंग कांप रहा था। एक गार्ड ने उस पर गन पॉइंट किया मगर ब्लैंक ने इशारे से मना कर दिया।

"तो तुम्हें पता हो जाना चाहिए था रावत! ब्लैंक सुबूत को साथ रखकर नहीं चलता। वैसे उसके बाद तुमने भीड़ को भड़काकर, गजब की बखूबी से शांत किया है! मैं तो तुम्हारे इस खेल का कायल हो गया।" ब्लैंक हँसते हुए बोला, उसके ठहाकों का शोर चारों तरफ गूंज गया। "तुम तो हीरो बन गए यार!" कहते हुए वह और जोर से हँसने लगा।

"मैंने किसी को नहीं भड़काया ब्लैंक! आखिर तुम करना क्या चाहते हो? तुम्हें तो बस अपना माल एक्सपोर्ट करना था जिसके लिए पुलिस का ध्यान भटकाना जरूरी था, जिसमें मैंने तुम्हारी बहुत मदद की अब तुम क्या चाहते हो?" वह नकाबपोश, ब्लैंक की आँखों में शैतानी शरारत देखकर बुरी तरह घबरा गया था।

"मैं क्या चाहता हूँ? हाहाहाहा….!" कहते हुए ब्लैंक ने जोरदार ठहाका लगाया। "मैं तो कुछ भी नहीं चाहता! किसी को चाहना होता तो यू.पी.एस.सी. का एग्जाम नहीं दे रहा होता? हाहाहा...!" ब्लैंक ने हँसते हुए कहा, वह नकाबपोश, उसकी हंसी से बुरी तरह सहम गया। "हम हमेशा दो ही चीज पूरा करते हैं - मक़सद और इंतक़ाम! और जो भी हमारे रास्ते में आता है उसे उखाड़ कर दफन कर देते हैं।"

"तुम्हारा एक ट्रक जा चुका था ब्लैंक! उसी तरह सभी बाहर निकल जाते!" उस शख्स ने गिड़गिड़ाते हुए कहा।

"नहीं! ड्राइवर की बेवकूफी से वो एक पुलिसिये की नज़र में आ गया था, फिर मेरे कहने पर ट्रक की अदलाबदली कर बच्चों वाला ट्रक जंगल में ले जाया गया। और वह खाली ट्रक मैंने यूं ही दूसरे रास्तें में भेज दिया ताकि वह उस पुलिसिये को नजर आ जाए और फिर उसे ब्लास्ट कर दिया। मगर अगले दिन मेरा एक ट्रक मसूरी के जंगल में जलकर खाक हो गया, मेरे आदमियों को वह घाटी में जला हुआ मिला। तुम्हें पता भी है उसमें कितना कीमती सामान था, ये हमारे मक़सद के लिए बहुत जरूरी था रावत! तुम्हारें ये पुलिसिये खुद को हीरो साबित करने के चक्कर में इन मासूमों की जान ले रहे हैं। मैंने तो कुछ भी नहीं किया हाहाहा….!" अचानक ही ब्लैंक का गूंजता हुआ क्रोधित स्वर, उसके अट्ठहासों में गुम हो गया। उस नकाबपोश का दिमाग काम करना बंद कर चुका था, उसे कुछ भी समझ नही आ रहा था।

"त..तो तुम यह सब मुझे क्यों बता रहे हो ब्लैंक?" उसने किसी तरह हिम्मत करके हकलाते हुए पूछा। "क्या तुम्हें डर नहीं कि मैं तुम्हारें खिलाफ जा सकता हूँ?"

"नहीं!" ब्लैंक ने उसकी आंखों में झाँकते हुए गम्भीर स्वर में कहा। "बल्कि मुझे पूरा विश्वास है कि तुम मेरे खिलाफ जाओगे, मगर फिर उसके बाद क्या होगा तुम सोच लेना। जो जनता तुम्हें अपना भगवान मानती है वही तुमपर चप्पल-जूते टमाटर और अंडे बरसाती हुई नजर आएगी!" ब्लैंक ने मुस्कुराते हुए कहा, उसके हाथों में एक माइक्रोचिप के आकार का कुछ था, कहते समय उसका इशारा उसी ओर था।

"उन फोटोज और फाइल्स के दम पर मुझे अब और नहीं धमका सकते हो ब्लैंक!" वह नकाबपोश गरजा।

"मुझे अच्छी तरह से मालूम है कि किसी बेलगाम घोड़े पर लगाम कैसे कसा जाता है रावत! उम्मीद है तुम इसे नहीं भूले होंगे।" ब्लैंक ने एक तस्वीर प्रक्षेपित किया, जिसमें एक मासूम सी लड़की बैठी हुई थी, उसके गले के पास एक लाल घेरा बनाया हुआ था। ब्लैंक के हाथों में एक छोटा सा रिमोट नजर आ रहा था, वह तस्वीर देखकर उसकी आँखों में शैतानी मुस्कान उभर आई।

"काव्या! मेरी बच्ची।" नकाबपोश बुरी तरह चीखा। "तुम उसे कुछ नहीं करोगे, म...मैं वादा करता हूँ; मैं कुछ भी नहीं करूंगा। प्लीज उसे कुछ मत करना।" नकाबपोश की आँखों से आँसू बहने लगे। "वह बम उसके शरीर से निकाल दो प्लीज!"

"ओ रावत! कितने नखरे करते हो तुम! तुम्हें अच्छे से मालूम है मेरे मकसद के बीच आने का हश्र क्या होता है।" ब्लैंक व्यंग्यपूर्ण अंदाज में बोला।

"मुझे माफ़ कर दो प्लीज!" नकाबपोश बुरी तरह गिड़गिड़ा रहा था।

"मांगों! और रहम की भीख मांगो। मगर अब जो तय हो चुका है वह बदला नही जा सकता।" ब्लैंक बुरी तरह गुर्राया, उसकी गुर्राहट सुनकर नकाबपोश का रोम-रोम कांप गया। ब्लैंक की उंगलियां रिमोट के लाल बटन की ओर बढ़ी।

"तुम मेरे साथ जो चाहते हो वो करो ब्लैंक मगर मेरी बच्ची को कोई नुकसान मत पहुँचाओ! मैं तुमसे रहम की भीख मांगता हूं।" वह नकाबपोश ब्लैंक के पैरों में लोट गया।

"आइंदा से मुझसे कभी ऐसे पेश मत आना कि जैसे तुमने मुझपर एहसान किया हो! जब तक मेरी हाँ में हाँ मिलाओगे, तभी तक अपनी बेटी से मिल पाओगे। हाहाहा ..!" ब्लैंक की शैतानी हँसी हॉल में चारों ओर गूँजने लगीं थी। "अब तुम्हारी कोई ज़िंदगी नहीं है रावत! तुम्हारे फाइल्स के अलावा हमारे पास वह तोता भी हैं जिसमें तुम्हारी जान है।"

"मेरी बेटी को कोई नुकसान मत पहुँचाना प्लीज!" उस नकाबपोश का नकाब उसके आँसुओ से तर हो चुका था।

"जाओ! मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ।" अचानक ही ब्लैंक के बोलने का अंदाज़ बदल गया।

"क..क्या मतलब!" वह नकाबपोश बुरी तरह से हड़बड़ाया।

"ये लो अपनी सारी फाइल्स और ये रिमोट! मैं तुम्हें मुक्त करता हूँ।" ब्लैंक ने मुस्कुराते हुए कहा, नकाब के कारण उसकी मुस्कान बाहर से तो न दिखी पर आँखों में मचल रही शरारतों को देखकर वह नकाबपोश और अधिक बुरी तरह घबरा गया।

"मैं..मैं आपको कभी धोखा नहीं दूंगा स..सर!" उस नकाबपोश के होंठ कांपने लगें।

"जानता हूँ मिस्टर रावत! इसीलिए तो ये सभी चीजें तुम्हें दे रहा हूँ। जाओ अब तुम मुक्त हो।" ब्लैंक ने मुस्कुराते हुए कहा।

"थैंक यू! थैंक यू...! ब्लैंक….. सर!" वह तेजी से अपनी कार की ओर भागा, अगले ही क्षण उसी स्थान पर पुनः सुरंग बनने लगा जहां से कार ने भीतर प्रवेश किया था।

"अब तुम वाकई में मुक्त किये जाते हो रावत! तुमने हमारी बहुत मदद की है, खुदा तुम्हें जन्नत नसीब करे।" ब्लैंक ने हौले से मुस्कुराते हुए कहा।

◆◆◆◆

अरुण इस वक़्त एक ऊंची इमारत की छत पर खड़ा था, वह दूरबीन की सहायता से आने-जाने वाली सभी गाड़ियों और ट्रकों पर नजर जमाये हुए था। इस वक़्त उसके सम्पूर्ण जिस्म पर काला लिबास था, वह दोनों हाथों से दूरबीन थामें, हर एक चीज पर आँखे गड़ाए हुए था। उस नीडल से उसे कुछ खास मदद नहीं मिली, जो भी करना था उसे अपनी सूझबूझ से ही करना था। उसने अपनी दूरबीन के लेंसेस को चेंज कर अल्ट्रावॉइड मोड ऑन कर रखा था, इससे वह हर एक चीज को बड़ी बारीकी से देख पा रहा था। तभी उसकी आँखों के सामने से एक ब्लैक कार गुजरी। अरुण को उस कार पर एक अजीब सा चिन्ह नजर आया, उसे लगा कि उसने इस चिन्ह को कहीं तो देखा हुआ है। उसने अपने फ़ोन में आदित्य का मैसेज चेक किया जहां उसे एक पिक मिली, जिसमें सेम वही चिन्ह बना हुआ था। अरुण को याद आया यह वही लड़का था जो उसकी इन्वेस्टिगेशन के दौरान आत्महत्या करके मर गया था। वह उस कार के पीछे भागा, कार अब तक काफी दूर निकल चुकी थी, उसने नीचे एक खड़ी बाइक देखी, वह छत से नीचे कूद गया। बिना चाभी के बाइक को स्टार्ट करने में थोड़ा समय लगा मगर वह देख चुका था कि गाड़ी किस दिशा में जा रही थी।

बाइक स्टार्ट होते वह उसे उसी दिशा में दौड़ा दिया जिधर वह काली कार गयी हुई थी। रात के अंधेरे में, उस सुनसान सड़क पर हवाओं को चीरते हुए अरुण की मोटरसाइकिल से बड़ी तेजी से उस कार के दिशा में बढ़ा। अरुण के हाथ एक्सीलेटर पर बुरी तरह से कसे हुए थे, स्पीडोमीटर का कांटा, मीटर को तोड़कर बाहर आने को उतावला होता जा रहा था। तभी उसे एक घर के पास वहीं काली कार दिखाई दी, उसने मोटरसाइकिल को रोकना चाहा मगर अत्यधिक स्पीड के कारण मोटरसाइकिल गिरते हुए सड़क पर काफी दूर तक घिसटती गई। वो तो अच्छा हुआ कि अरुण पहले से बाइक से कूद गया था नहीं तो उसके पूरे बदन का बुरी तरह से छिलना तय था। अरुण फुर्ती से साथ उछलकर खड़ा हुआ, बाइक लुढ़कते हुए सड़क के दूसरे किनारे घुस गई थी। तभी वहां से पुलिस की एक रात्रि गश्त टीम की गाड़ी गुजरी, अरुण ने उसी काली कार के नीचे खुद को छिपा लिया।

"शिट!" अरुण के हाथ में कोई लिसलिसा पदार्थ लग गया, जिसे छुड़ाने की कोशिश करता हुआ वह बोला।

पुलिस की गाड़ी जाते ही वह उस कार के नीचे से निकलकर खड़ा हुआ। अपनी आँखों के सामने मौजूद इमारत को देखकर उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ। यह मशहूर राजनेता एवं समाजसेवके नरेश रावत का घर था, वह कई बार नरेश का नाम सुन चुका था, उसे यह भी पता था कि हाल के दो वाकयों में नरेश की ही मदद से उग्र भीड़ को शांत किया जा सका था। वह कार के सामने वाले काँच को गौर से देखने लगा कि कहीं उसने गलत कार का पीछा तो नहीं किया। मगर..! कार के सामने वाले काँच पर वहीं चिन्ह दिखाई दे रहा था, यह आसानी से नही देखा जा सकता था, मगर उस स्थान पर कांच की परत भीतर से थोड़ी मोटी थी, जिस कारण कभी मुड़ने पर उसपर पड़ने वाला प्रकाश इस प्रकार परावर्तित होता था कि एक पल को नंगी आंखों से भी दिख जाता था।

"ये भी? मतलब देश के सारे दिखावे के देशप्रेमी, इस तरह दुश्मनों से हाथ मिलाकर देशप्रेम करते हैं।" अरुण का दिमाग सन्ना गया, उसके ऊपर सनक हावी होने लगी।

"दरवाजा खोलो मिस्टर!" अरुण ने गेट को तेजी से ठकठकाते हुए बोला। उसने बेल बजाना उचित नहीं समझा। थोड़ी देर तक जब दरवाजा नहीं खुला तो अरुण ने पुनः ठकठकाया। मगर फिर भी जब कोई गेट खोलने नहीं आया तो यह देखकर अरुण के सब्र का बांध टूट गया। उसने दरवाजे पर जोरदार लात जमाया, और लगातार धड़ाधड़ पीटते गया। दरवाजा अरुण के शक्तिशाली वारों के सामने कहीं का न ठहर सका, अंदर से उसका लॉक टूट चुका था, अगले ही पल वह दरवाजा चरमराकर खुल गया।

"नरेश! कहाँ है तू? बाहर आ गद्दार! तुझे क्या लगा समाजसेवी का मुखौटा पहनकर अगर तू देश के साथ गद्दारी करेगा तो किसी को पता नहीं चलेगा?" अरुण गुस्से से चीखता हुआ बोला। जब कोई आवाज न आई तो वह सामने की सीढ़ियों से ऊपर चढ़ता गया। उसे ताज्जुब हो रहा था कि हमेशा बॉडीगॉर्डस से घिरे रहने वाले शख्स के घर पर एक भी सिक्युरिटी गॉर्ड तक नहीं है, बस यहीं नही यहां तो लाइट्स भी पूरी तरह ऑफ थीं।

"तू अपनी मौत से नहीं छिप सकेगा कुत्ते के पिल्ले! बाहर आ! आज अरुण तेरा हिसाब करेगा।" अरुण गुस्से से दहाड़ रहा था, उसकी आवाज उस पूरी बिल्डिंग में गूंज रही थी मगर फिर भी वहां कोई न आया।

"छिपकर कहाँ जाएगा गिरगिट! अपनी मौत से नहीं छिपा करते! अरुण ने तुझे रंगे हाथों पकड़ा है। बता क्या मकसद है तेरा, कौन है इन सबके पीछे?" अब तक अरुण फर्स्ट फ्लोर पर आ चुका था।

"किसी का दरवाजा तोड़कर उसके घर में घुसना और इस तरह चिल्लाना गैरकानूनी है मिस्टर अरुण!" पास से स्विच ऑन होने पर टिक का स्वर उभरा, उसी के साथ रोशनी पूरे बरामदे में फैल गयी। हाथ में बन्दूक लिए, अरुण पर पॉइंट करता हुआ नरेश गुर्राया।

"देशप्रेमी का मुखौटा पहनकर देश के दुश्मनों से प्रेम करना कौन सा कानूनी है मिस्टर रावत?" अरुण गुर्राया।

"तुम्हें गलतफहमी हुई है अरुण!" नरेश उसपर बन्दूक ताने हुए बोला।

"मुझे गलतफहमी हुई है?" अरुण गन पॉइंट पर होने के बावजूद गुर्राया। "अगर गलतफहमी हुई होती तो मेरा स्वागत इस तरह नहीं किया जाता रावत!" अरुण की दहाड़ ने नरेश को भीगी बिल्ली बनने पर मजबूर कर दिया था।

"मेरा यकीन मानो अरुण! ऐसा कुछ भी नहीं है जैसा तुम्हें दिख रहा है, प्लीज बस एक बार मेरी बात सुनो।" नरेश लगभग गिड़गिड़ाते हुए बोला।

"तुम कहना चाहते हो कि मैंने जो भी देखा है वो झूठ है, और मै उसपर यकीन करूँ!" अरुण ने झपट्टा मारा, नरेश की बन्दूक नीचे गिरकर दूर चली गयी, अब नरेश की गर्दन अरुण के हाथों में थी।

"नहीं..! तुमने जो देखा वो सच है मगर पूरा सच नहीं!" नरेश की साँसे अटकने लगीं थी, फिर भी अरुण ने दबाव बढ़ाना जारी रखा।

"एक आदमी जो मासूमों के विक्षिप्त शवों पर एक अच्छा सा भाषण तैयार करता है और झूठा दिखावा करता रहता है, आज जब उसका असली चेहरा सामने आ गए तो उसे पूरे सच की पड़ी है। एक बार खुद से पूछो जरा क्या तुम वास्तव में एक समाजसेवक है।" अरुण का गुस्सा हद से बाहर हो चुका था।

"मैं हमेशा से समाजसेवक और एक देशप्रेमी था अरुण! मैं हमेशा रहूंगा।" साँसे अटकने के बावजूद नरेश पूरी दृढ़ता से बोला।

"एक ऐसा देशप्रेमी और समाजसेवक जो अपने बच्चों के खून से अपना दामन धोकर पाक करता है? तुम जैसे गद्दार कभी देशप्रेमी नहीं हो सकते, तुम सत्ता और दौलत के भूखे होते हो, जो भी इसके नाम की हड्डी डालता है उसके आगे पीछे दुम हिलाने लगते हो। तुम जैसों को मैं बहुत अच्छे से जानता हूँ रावत!" अरुण का स्वर और अधिक हिंसक हो गया, उसकी आँखों में खूँखारता स्पष्टया दिखाई दे रही थी।

"मैं इन सबके लिए बिकने वालों में से नहीं हूँ अरुण! तुम्हें मेरी बात सुननी ही होगी! मेरी बेटी…!"

"अब तक जो तेरी बकवास सुनी वही बहुत है जालिम!" अरुण ने उसके मुंह पर जोरदार घूसा मारा, नरेश के होंठ फट गए।

"त..तुम मेरी बात सुनो।" नरेश लड़खड़ाते हुए बोला, अरुण का शक्तिशाली घूसा खाकर उसे बंद कमरे में तारे नजर आने लगे थे।

"बहुत सुन चुका मैं! अब तू मुझे अपना असली मकसद बताएगा भेड़ के खाल में छिपे भेड़िये! आखिर क्या मक़सद है तेरा? क्यों इन मासूमों के पीछे पड़ा हुआ है?" अरुण ने उसी बुरी तरह झंझोड़ दिया, उसकी होंठो से बह रहा खून अरुण के शर्ट पर भी गिर गया। "बोलता क्यों नहीं है हरामखोर!" अरुण के अगले मुक्के ने नरेश का जबड़ा बुरी तरह हिला दिया, नरेश उसका विरोध करने की हालत में नहीं था मगर उसने एक शब्द भी नहीं बोला।

"हर बार मासूमों की लाश पर भाषण देने पहुँच जाता है तू! बोल क्या मिलता है तुझे ऐसा करके? तेरा नेटवर्क कहाँ फैला हुआ है!" अरुण अब पूरी तरह पागल हो चुका था, नरेश का चेहरा खून से नहा चुका था, वह कुछ भी बोल सकने की हालत में न था। तभी पास के कमरे का दरवाजा खुला, उसमें से एक सोलह-सत्रह वर्षीय लड़की हाथ में बैट लिये बाहर निकली, ऐसी स्थिति देखकर उसे कुछ समझ न आया, उसने बिना आव-ताव देखे अपनी पूरी ताकत से अरुण के सिर पर बैट दे मारा।

"मेरे पापा से दूर हटो गंदे जानवर!" अरुण की ओर घृणा भरी नजरों से देखते हुए वह चिल्लाई। उसने बैट को अपने दोनों हाथों में मजबूती से पकड़ा हुआ था, अपने पापा की ऐसी हालत देखकर काव्या बुरी तरह बौखला गयी थी। इससे पहले अरुण संभलता, काव्या ने अपनी पूरी ताकत से बैट घुमाया। अरुण, नरेश से अलग होकर दूसरी ओर जा गिरा, काव्या नें अपना बैट फेंका और नरेश का चेहरा अपने दुप्पटे से साफ करने लगी।

"पापा-पापा!" वह बुरी तरह चिल्लाने लगी। मगर नरेश अब तक बेहोश हो चुका था। "आखिर इन्होंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था जो तुमने इनके साथ ऐसा किया?" उसके हाथ दुबारा बैट की ओर बढ़े, मगर अरुण अब तक सम्भल चुका था।

"ये देशप्रेम का नकाब ओढ़ने वाला देशद्रोही है! मासूमों के खून से अपना दामन धोने वाला एक राक्षस! और अरुण को किसी राक्षस का वध करने के लिए कोई रीज़न नहीं चाहिए।" अरुण के हाथों में उसकी पिस्तौल चमकने लगी।

"नहीं, मेरे पापा कुछ भी हो सकते हैं मगर वो नहीं जो तुम कह रहे हो!" काव्या की आंखों में अपने पिता के प्रति असीम प्रेम और विश्वास झलक रहा था।

"मेरे रास्ते से हट जाओ लड़की! अरुण गुनाहगारों को कभी माफ नहीं करता!" अरुण ने काव्या पर पिस्तौल तान दिया।

"अपने गुनाहगार को सजा देने से पहले ये तो पता कर लो कि तुम्हारी दुकान उसी ने जलाई है या नही!" अरुण के हाथों पर जोरदार झटका लगा, पिस्तौल उसके हाथों से छिटककर काफी दूर जा गिरी थी, अरुण ने महसूस किया जैसे उसके हाथ पर किसी ने पैर से मारा हो। उसकी नजरें उस दिशा में घूम गयीं, उसने उस हमलावर को देखा, उसके आँखों में शैतानियत के भाव जाग गए, उसके होंठो पर विचित्र मुस्कान फैल गयी।

"अरुण पर हाथ उठाकर तूने अपनी मौत बुला ली है लड़के!" अनि की ओर देखता हुआ अरुण बोला।

"गलत बात इंस्पेक्टर साहिब! सॉरी आप तो भूतपूर्व इंस्पेक्टर कहलायेंगे अब। मैंने हाथ नहीं पैर उठाया था!" अनि की आँखों में गजब की मुस्कान थिरक रही थी। वह जानता था अरुण से सीधा टक्कर लेना आसान नहीं होगा मगर फिर भी वह तैयार खड़ा था।


क्रमशः…….


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2 Comments

Seema Priyadarshini sahay

11-Nov-2021 06:22 PM

बहुत खूबसूरत भाग।

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Niraj Pandey

05-Nov-2021 11:49 AM

बहुत ही जबरदस्त कहानी

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